A SIMPLE KEY FOR BEKU4D UNVEILED

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ख़ुदा का नूर तुझ में हू-ब-हू है ख़ुदा पिन्हा मगर तू रू-ब-रू है तेरी 'अज़मत का अंदाज़ा हो किस को ख़ुदा है और ख़ुदा के बा'द तू है कोई आप सा देखा नहीं, कोई आप सा देखा नहीं देखने को, या मुहम्मद ! यूँ तो क्या देखा नहीं हाँ ! मगर महबूब कोई आप सा देखा नहीं देखने को, या मुहम्मद ! यूँ तो क्या देखा नहीं इक से इक बढ़ कर हसीं देखे मगर, या मुस्तफ़ा ! तुम से बढ़ कर हुस्न वाला दूसरा देखा नहीं देखने को, या मुहम्मद ! यूँ तो क्या देखा नहीं कोई आप सा देखा नहीं, कोई आप सा देखा नहीं यूँ तो सारे नबी मोहतरम हैं मगर कोई आप सा देखा नहीं, कोई आप सा देखा नहीं रसूल और भी आए जहान में लेकिन कोई आप सा देखा नहीं मीम का पर्दा हटा कर वो निगाह-ए-शौक़ से मुस्तफ़ा को देख ले जिस ने ख़ुदा देखा नहीं कोई आप सा देखा नहीं, कोई आप सा देखा नहीं सूरत को तेरी देख के कुछ मुँह से न निकला निकला तो ये निकला कोई आप सा देखा नहीं, कोई आप सा देखा नहीं मैं तो कर सकता नहीं जन्नत की बातें शौक़ से वो करे जिस ने दयार-ए-मुस्तफ़ा देखा नहीं देखने को, या मुहम्मद !

दुनिया में मुझे तुमने जब भी अपना बनाया है

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क्या बताऊँ कि क्या मदीना है बस मेरा मुद्द'आ मदीना है क्या बताऊँ कि क्या मदीना है उठ के जाऊँ कहाँ मदीने से क्या कोई दूसरा मदीना है क्या बताऊँ कि क्या मदीना है उस की आँखों का नूर तो देखो जिस का देखा हुवा मदीना है क्या बताऊँ कि क्या मदीना है दिल में अब कोई आरज़ू ही नहीं या मुहम्मद है या मदीना है क्या बताऊँ कि क्या मदीना है दुनिया वाले तो दर्द देते हैं ज़ख़्मी दिल की दवा मदीना है क्या बताऊँ कि क्या मदीना है दुनिया वाले तो दर्द देते हैं दर्द-ए-दिल की दवा मदीना है क्या बताऊँ कि क्या मदीना है मेरे आक़ा !

बेदम ! मेरी क़िस्मत में चक्कर हैं इसी दर के

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क्या लुत्फ़ हो महशर में क़दमों में गिरूँ उनके

अना मजनून, मजनून, मजनूनु-सिद्दीक़ अना मजनून, मजनून, मजनूनु-सिद्दीक़ परवाने को चराग़ तो बुलबुल को फूल बस सिद्दीक़ के लिए है ख़ुदा का रसूल बस सालार-ए-सहाबा, वो पहला ख़लीफ़ा सरकार का प्यारा, सिद्दीक़ हमारा हर सुन्नी का ना'रा, सिद्दीक़ हमारा मुस्तफ़ा का हम-सफ़र ! अबू-बकर अबू-बकर ! गली-गली नगर-नगर ! अबू-बकर अबू-बकर ! लुटाया जिस ने अपना घर ! अबू-बकर अबू-बकर ! नहीं है जिस को कोई डर ! अबू-बकर अबू-बकर ! है चर्चे जिस के 'अर्श पर ! अबू-बकर अबू-बकर ! लगेगा नारा फ़र्श पर ! अबू-बकर अबू-बकर !

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कहाँ जाए, आक़ा ! ये मँगता भला मदीना बुला लीजिए वो रमज़ान तेरा, वो दालान तेरा वो अज्वा, वो ज़मज़म, ये मेहमान तेरा तेरे दर पे इफ़्तार का वो मज़ा मदीना बुला लीजिए जहाँ के सभी ज़र्रे शम्स-ओ-क़मर हैं जहाँ पे अबू-बक्र-ओ-'उस्माँ, 'उमर हैं जहाँ जल्वा-फ़रमा हैं हम्ज़ा चचा मदीना बुला लीजिए हुआ है जहाँ से जहाँ ये मुनव्वर जहाँ आए जिब्रील क़ुरआन ले कर मुझे देखना है वो ग़ार-ए-हिरा मदीना बुला लीजिए जिसे सब हैं कहते नक़ी ख़ाँ का बेटा वो अहमद रज़ा है बरेली में लेटा उसी आ'ला...

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